Add To collaction

जीवन के सुनहरे पल लेखनी प्रतियोगिता -23-Nov-2023

              जीवन के सुनहरे पल

           "मैने आपका टिफिन लगा दिया है?" सन्जना ने अपने पति शुभम से कहा।

      लेकिन शुभम ने कोई  प्रतिक्रिया नहीं की और वह चुपचाप  अपने कार्य  में लगा रहा। सन्जना  को इस बात का बहुत  दुःख था कि शुभम अकेले ही  परेशानी को क्यौ सहन कर रहा है क्यौकि कल शाम सन्जना  की  शुभम के दोस्त  की पत्नी से बात हुई थी तब उसने बताया था कि शुभम  को नौकरी से निकाल  दिया गया है। यह सुनकर सन्जना उसी समय से शुभम को यह पूछना चाह रही थी परन्तु पूछ नहीं पा रही  थी।

   उदास शुभम ने चुपचाप अपना टिफिन बॉक्स  उठाया और ऑफिस जाने के लिए निकलने लगा।
  " मुझे  भी कुछ काम है ,मैं भी साथ चलती हूं ।" सन्जना ने अपने पति से कहा।
     इधर शुभम तीन चार दिन से  सुबह ऑफिस के समय घर से निकलता और पाँच  बजे घर आ जाता था। बात बात पर बच्चों को डांटना, उनके साथ मस्ती करना, सब जैसे भूल ही गया था।

         सन्जना भी  गौर कर रही थी कि कुछ दिनों से वह अत्यंत शांत और खोया खोया सा दिख रहा था।

         शुभम  ने   सन्जना को साथ चलने के लिए  हाँ तो करदी। परन्तु उसके मन नाना प्रकार  के बिचारौ का तूफान  सा उठ रहा था।

    मोटरसाइकिल अपनी रफ्तार से चली जा रही थी। सन्जना शुभम के कंधे पर हाथ रखे उनके पीछे बैठी हुई थी।
" कहाँ जाना है?   शुभम ने ही  पूछा ।
  
    "जहाँ आपकी मर्जी हो वहीं ले चलो ?" ,सन्जना बोली ।

      "  यह कैसा मजाक है ?", शुभम ने यह कहकर गुस्से से अपनी मोटरसाइकिल रोक दी ।
  
      "वही तो मैं भी बोल रही हूं ,यह सब क्या है? हर रोज ऑफिस के समय घर से निकलना और पाँच  बजे घर आ जाना  ?  आखिर  मैं तुम्हारी बीवी हूं  शुभम, मुझसे कुछ भी छुपा नहीं पाओगे ।" सन्जना बोली ।
 
        "मैंने क्या छुपाया है? शुभम ने सर को झुकाते हुए कहा ।

   "कल मैं बाजार गई थी तो मेरी  तुम्हारे दोस्त की पत्नी से मुलाकात हो गयी। तभी मुझे मालूम हुआ कि तुम्हारी नौकरी चली गई है।मैं तुम्हारे सुख की ही नहीं ,दुख की भी साथी हूं ।इतने दिनों से तुम अकेले इस मानसिक यातना को झेल रहे हो। मैं इस तकलीफ को तुम्हारे साथ बांट सकती हूं। तुम अब आराम से नई नौकरी की तलाश करो। हमारे पास इतनी जमा पूंजी है कि हमारा कुछ दिनों तक आराम से गुजारा हो जाएगा। अगर तुम्हें नई नौकरी नहीं मिली तो भी हम मिलकर कोई रोजगार के साधन खोज लेंगे।"

"  चलो उधर चलकर बैठते हैं।".... शुभम ने सामने के एक पार्क  की ओर इशारा करते हुए कहा ।
   "पार्क में ?" सन्जना ने आश्चर्य से पूछा।

    " हाँ आज हम  वही बैठ कर  दोनों  मिलकर टिफिन  का खाना एक साथ  खाते हैं।", शुभम बोला।

       शुभम व सन्जना दोंनों ही हंसने लगे। शुभम  को ऐसा महसूस हुआ जैसे सर पर छाए सारे काले बादल छँट गए  हों और उसके जीवन के यह पल सबसे सुनहरे पल हों। शुभम को सन्जना पर गर्व  महसूस  हुआ।  सन्जना ने आज  वास्तव  में उसकी अर्धांगिनी होने का फर्ज  पूरा किया था। शुभम का दिल सन्जना को गले से लगाकर  चूमने का मन कर रहा था  परन्तु पार्क  में लोगों की भीड़ देखकर  वह ऐसा नहीं कर सका। अब उसको अपनी नौकरी जाने का कोई  दुःख नहीं था।

       इसके बाद  दोनों घर वापिस  आगये।

आज की दैनिक  प्रतियोगिता हेतु रचना।
नरेश शर्मा " पचौरी "









   22
4 Comments

Rupesh Kumar

19-Dec-2023 09:19 PM

V nice

Reply

Alka jain

19-Dec-2023 10:47 AM

Nyc

Reply

Reena yadav

23-Nov-2023 05:48 PM

👍👍

Reply